Sunday, December 2, 2018

प्यार एक खूबसूरत एहसास

प्यार एक खुबसूरत एहसास,
प्यार जीवन की आस और विश्वास !!
प्यार प्रभु की अनमोल नियामत,
प्यार शीतल हवा का झौंका,
पुष्पों की भीनी-भीनी सुगंध है।।
प्यार दीपक की लौ, मंदिर की घंटी,
पायल की खनक,नुपुरों की झनकार है!!
प्यार में बसे सतरंगी सपने,
कुछ मेरे कुछ तेरे सबके अपने।
प्यार में रचा-बसा सारा संसार,
प्यार जीवन में भावों का हार।
प्यार में समर्पण,त्याग,दीवानापन,
आनंद,मधुरता,सहज अपनापन।।
क्रोध ,राग,द्वेष ,ईर्ष्या से परे,
सुन्दर,सरल,सहज जीवन।।
प्यार दिलों को जोड़ता है,
परमार जीना सिखाता है।।
प्यार राह दिखाता है,
इसमें समाहित हो जाते 
'मैं 'और 'तुम'रह जाता 'हम'
यही वसुधैव कुटुंबकम् का आधार है।।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

Monday, November 26, 2018

ग्रंथ

महान ग्रंथों से समृद्ध,
हमारी साहित्य परंपरा।
अनुपम ज्ञान-विज्ञान,
इन महान ग्रंथों में भरा।
वेद,पुराण, उपनिषद,श्रुति,
श्री मद्भागवत गीता,मनु स्मृति।
रामायण और महाभारत,
महान मनीषियों की महान कृति।
सांख्य,योग,न्याय,मीमांसा,
अनुपम दर्शन ग्रंथ प्रकाशा।
रघुवंश, मेघदूत,ऋतु संहार,
कालिदास की श्रेष्ठता का प्रसार।
रामचरितमानस अनुपम ग्रंथ,
रामभक्ति का प्रशस्त करें पंथ।
कृष्ण लीला का अनुपम चित्रण,
सूरसागर ग्रंथ में है इसका वर्णन।
शैव-दर्शन का करती बखान,
प्रसाद की कामायनी है महान।
उत्तम चरित्र,उत्तम मूल्य विभूषित,
धर्म-पथ,सत्कर्म सुशोभित,
व्याकरण,गणित, चिकित्सा।
अन्यान्य ज्ञान ग्रंथों में शोभित।
उत्कृष्ट ज्ञान के ग्रंथ महान,
करते हैं परंपरा का बखान।
संस्कृति की पहचान ये ग्रंथ,
दर्शन,ज्ञान-विज्ञान के पंथ।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित


Saturday, November 3, 2018

ममता

ममता का संसार है व्यापक,
ममता का नहीं कोई मापक।
ममता की प्रतिमूर्ति है माँ,
मानव या किसी जीव की माँ।

ममता न देखे गोरा-काला,
ममता ने सृजन भार संभाला।
ममता जीव का पोषण करती,
ममता ही संस्कार है देती।

ममता न देखे अपना-पराया ,
ममता में संसार समाया।
ममता हृदय का सुंदर भाव,
ममता भर देती है घाव।

माँ ईश्वर की अनुपम रचना,
ममता उसका होता गहना।
ममता जीवन की अनुपम विभूति,
महिमा वर्णन वेद पुराण श्रुति।

ममता माँ की अद्भुत प्यारी,
देवता भी हैं इसके पुजारी।
ऐसा निर्मल भाव है मन का
शब्दों में महिमा न जाए उतारी।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित 

Thursday, October 11, 2018

मैं नारी हूँ मैं शक्ति हूँ

मैं सबला हूं पर अबला नहीं ,
मेरी शक्ति का तुम्हें भान नहीं। 

तुम जीत नहीं सकते मुझको, 
तुम हरा नहीं सकते मुझको। 

मैं सहती हूं पर कमजोर नहीं, 
मैं सुनती पर मजबूर नहीं । 

तुम भ्रम में जीवन जीते हो, 
मन ही मन खुश होते हो 

मेरे सब्र का प्याला छलकेगा, 
मेरा रौद्र रुप तब झलकेगा। 

तब मैं दुर्गा बन जाऊंगी, 
या फिर काली कहलाऊंगी। 

मैं स्वाभिमान की छाया हूं , 
रखती अपनी मर्यादा हूं। 

मेरी ममता मेरी शक्ति है, 
सतीत्व मेरा मेरी भक्ति है। 

मैं मां शक्ति का अंश बनूं, 
मैं उसके बताए पथ पर चलूं। 

अभिलाषा चौहान 
स्वरचित 






Saturday, October 6, 2018

इंतजार

प्रिय का करती इंतजार
हृदय हो रहा बेकरार
इक पल को नहीं करार
कब पूरा होगा इंतजार।

धीरे-धीरे गई रात गुजर
दिन के बीत रहे प्रहर
प्रियतम की नहीं कोई खबर
कैसे करूं उनका इंतजार !

घर-बाहर कहीं चैन न आवे
राह तकूं मेरा जी घबरावे
अब तो आओ प्रियतम प्यारे
अब और न होगा इंतजार।

तभी ईश्वर ने सुनी पुकार
प्रियतम छवि प्रत्यक्ष साकार
प्रेम मिलन ने लिया आकार
अब खत्म हुआ था इंतजार।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

Wednesday, October 3, 2018

राधा कृष्ण प्रेम रसधार

आज कृष्ण साथ मिला,
हाथों में उनका हाथ मिला।
तन मन में प्रेम तरंग उठी,
सृष्टि भी जैसे झूम उठी।
वन-उपवन भी हो गए पुष्पित,
बहने लगी मलय भी सुरभित।
चहक उठे तब पक्षी सारे ,
जब प्रियतम ने हाथ गहा रे।
प्रीत का रंग चहुंओर है छाया,
मिलन उसी से जो मनभाया।
झूम उठे धरती-गगन भी,
लौट आया देखो वसंत भी।
गुन-गुन करते भंवरे ऐसे,
सुर संगीत छिडें हो जैसे।
उड़ती तितलियां प्यारी- प्यारी,
महकने लगी प्रेम की फुलवारी।
बहने लगी है रस की धारा,
आनंदित संसार है सारा ।

अभिलाषा चौहान
(स्वरचित )

Tuesday, October 2, 2018

आदर्श कहां अब दिखते हैं?


प्रस्तुत रचना मेरे मन के भावों को अभिव्यक्त करती है। इसे अन्यथा न लेवें।

दादी नानी दूर हुई
बच्चों से कहानी दूर हुई
न होती आदर्शों की बातें
न सुनते अब अच्छी बातें
नेता अभिनेता दो चेहरे
अब बच्चों को दिखते हैं
किन आदर्शों की बात करें
जो कहीं नहीं अब दिखते हैं
जो घटता सबके समक्ष
अनुसरण उसी का होता है
बदल गई है सोच सभी की
बदल रहे संस्कार तभी
आदर्शों की बातें करना
बीते कल की बात हुई
भरा हुआ इतिहास हमारा
कितने अनुपम आदर्शों से
वर्तमान में कौन प्रभावित
होता है  इन आदर्शों से
बातें करते सब बडी़ बड़ी
सबको अपने सुख की पडी
अब कोई कहां उन आदर्शों पर
कभी खरा उतरता है ?


अभिलाषा चौहान
स्वरचित




Friday, September 28, 2018

दिल तो बच्चा है

दिल तो सच्चा है
इसे सच्चा ही रहने दो
दिल तो बच्चा है
इसे बच्चा ही रहने दो
खिलखिलाने दो मुस्कराने दो
उठाने दो जिंदगी का आनंद
मिली हैं सांसे हमको चंद
न करो पिंजरे में इसे बंद
पक्षियों की तरह उड़ने दो
चहकने दो चहचहाने दो
जीवन का आनंद उठाने दो
रहने दो इसे निर्विकार
बहने दो इसमें रसधार
रहे सबके लिए इसमें प्यार
करे सबका ये उपकार
बने सच्चा वो इंसान
जिसमें बचपन है विद्यमान
न करे खुद पर वो अभिमान
करे मानवता का कल्याण
देकर दूसरों को आनंद
वो खुद पाएगा परमानंद

अभिलाषा चौहान

विजय श्री

न डरना न हारना न भागना कभी
रहता सदा सुरक्षित मेरा देश है तभी
    सीमा पर चलती गोली
     शत्रु की हो बंद बोली
     खेलें वे खून की होली
      सीने पर खाते गोली
विजय श्री मिलती है देश को तभी
न रूकना न थमना न हारना कभी
      शत्रु के छुड़ाए छक्के
      हैं इरादों के वे पक्के
      दुश्मन के घर में घुसके
      होश उड़ाए जो उसके
पाई थी विजय उन्होंने लक्ष्य पर तभी
लहराता है तिरंगा बड़े शान से तभी
       मेरे देश की है सेना
       उसका क्या कहना
       झुकने कभी न देती
       मातृभूमि का शीश है ना
बन राह का रोड़ा शत्रु की राह में खड़ी
देख उसका हौंसला शत्रु की नींद है उडी

अभिलाषा चौहान (स्वरचित)
     

Monday, September 24, 2018

खामोशी

खामोशी की अपनी जुबान होती है
बिन कहे बहुत कुछ कह देती है ।
दिल का दर्द छलकता है खामोशी में
आंखें चुपचाप रोती रहती हैं।
सौ फसादों को मिटा देती है
क्रोध की अगन बुझा देती है
नफरतें रहती इससे दूर सदा
स्नेह बंधन को बांध देती है।
आंखों की बनके जुबां खामोशी
बिन कहे हाले दिल बता देती है ।
मजबूरी का बनके आईना जब
लबों को सिल देती है खामोशी
तब उमडता है दर्द का जो सागर
खामोशी बड़ी खामोशी से बता देती है।
कभी बन के कटार चुभती है
कभी रस की धार लगती है
कभी लगती किसी की बेबसी
कभी चुपचाप हंसती रहती है।
लफ्जहीन होकर ये खामोशी
अपनी ताकत को पता देती है