Tuesday, March 26, 2019

प्रभात बेला






प्राची दिशा में छिटकी लालिमा
बिखरने लगा मंगल कुमकुम
हर्षित वसुधा पा सौभाग्य प्रतीक
जाग्रत जीवन हर्षित तन-मन
वृक्ष भी करने लगे हैं नर्तन
पक्षी कलरव गूंज उठा है
जीवन फिर से झूम उठा है
खिलने को कलियाँ उत्सुक
सिंदूरी आभा में जलधि
सुंदरता का करता संवर्धन
सिंदूरी हुआ हिमगिरि
अति अलौकिक दिव्य दर्शन
तन-मन सिंदूरी हुआ हमारा
जब वसुधा पर बिखरा
मंगल कुमकुम सारा
जगजीवन हुआ ऊर्जावान
गऊएं भी छेड़ रही तान
खेतों में लहराती हरियाली
ग्वाले ने बांसुरी निकाली
सुनाई उसने मधुर धुन
भंवरा भी करता गुन-गुन
मंगलमय हुआ सारा जीवन
जब दिनकर का हुआ आगमन। ।

अभिलाषा चौहान 

एक दीप ऐसा जलाए

दीपावली पर
जलें दीप ऐसे
मिटे तम कलुष
मिटे अज्ञान ऐसे
रवि-किरणें
करें तम का नाश जैसे।
दीप मालाएं
हर ओर जगमगाएं
सबके जीवन में
ऐसे ही खुशियाँ आए
जैसे बगिया में
अनेक पुष्प खिल जाएं।
जीवन में यश सुख
समृद्धि बढ़े ऐसे
कोई पौधा वृक्ष
बनता हो जैसे।
दीप दीवाली के
कर दें हर घर को रोशन
नहीं हो कहीं भी
किसी का अब शोषण।
एक दीप जलाएं
 सदा हम ऐसा
हो अंतरतम प्रकाशित
मन से मन का
कराए मिलन हमेशा
अभिलाषा चौहान
स्वरचित



दीवाली

आया दीवाली का पावन त्योहार,
संग लाया अपने खुशियाँ अपार।
द्वार - द्वार सजने लगे तोरण,
जगमग दीपों से हर घर रोशन।
इतने दीप जले धरती पर ,
कालिमा अमा की लेते हैं हर।
पाँच दिनों का ये पर्व मनोहर,
बड़े उल्लास से मनता घर-घर।
मन से मन फिर मिलने लगे हैं ,
प्रेम-पुष्प फिर खिलने लगे हैं।
आओ मिलकर त्योहार मनाएं,
दीप-दान कर अंधकार मिटाए।
बस इतनी सी इच्छा है मन में,
अंधकार न रहे किसी के जीवन में ।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

गोवर्धन पूजा

करिए नित गोधन की पूजा,
उस सम कोई और न दूजा।
गो साक्षात लक्ष्मी स्वरूपा,
गो संवर्धन संस्कृति अनुरूपा।
पंचगव्य अति पावन अमृत,
गोबर, मूत्र, दूध, दही और घृत।
कान्हा को गऊएं अति प्यारी,
गो रक्षण करें गो हितकारी।
गोवर्धन का अर्थ यह दूजा,
गोमाता की करिए सदा पूजा।
गोमाता सहें कष्ट अपारा,
गोरक्षण हो संकल्प हमारा।
गोसंवर्धन करो जीवन के हेतु,
कान्हा भक्ति में है गोमाता सेतु।
गोवर्धन भी गोबर से ही बनते,
नवान्नों के फिर भोग हैं लगते।
बिन गो के गोवर्धन न होंगे,
बिन गो सेवा कान्हा प्रसन्न न होंगे।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित