Friday, September 28, 2018

दिल तो बच्चा है

दिल तो सच्चा है
इसे सच्चा ही रहने दो
दिल तो बच्चा है
इसे बच्चा ही रहने दो
खिलखिलाने दो मुस्कराने दो
उठाने दो जिंदगी का आनंद
मिली हैं सांसे हमको चंद
न करो पिंजरे में इसे बंद
पक्षियों की तरह उड़ने दो
चहकने दो चहचहाने दो
जीवन का आनंद उठाने दो
रहने दो इसे निर्विकार
बहने दो इसमें रसधार
रहे सबके लिए इसमें प्यार
करे सबका ये उपकार
बने सच्चा वो इंसान
जिसमें बचपन है विद्यमान
न करे खुद पर वो अभिमान
करे मानवता का कल्याण
देकर दूसरों को आनंद
वो खुद पाएगा परमानंद

अभिलाषा चौहान

विजय श्री

न डरना न हारना न भागना कभी
रहता सदा सुरक्षित मेरा देश है तभी
    सीमा पर चलती गोली
     शत्रु की हो बंद बोली
     खेलें वे खून की होली
      सीने पर खाते गोली
विजय श्री मिलती है देश को तभी
न रूकना न थमना न हारना कभी
      शत्रु के छुड़ाए छक्के
      हैं इरादों के वे पक्के
      दुश्मन के घर में घुसके
      होश उड़ाए जो उसके
पाई थी विजय उन्होंने लक्ष्य पर तभी
लहराता है तिरंगा बड़े शान से तभी
       मेरे देश की है सेना
       उसका क्या कहना
       झुकने कभी न देती
       मातृभूमि का शीश है ना
बन राह का रोड़ा शत्रु की राह में खड़ी
देख उसका हौंसला शत्रु की नींद है उडी

अभिलाषा चौहान (स्वरचित)
     

Monday, September 24, 2018

खामोशी

खामोशी की अपनी जुबान होती है
बिन कहे बहुत कुछ कह देती है ।
दिल का दर्द छलकता है खामोशी में
आंखें चुपचाप रोती रहती हैं।
सौ फसादों को मिटा देती है
क्रोध की अगन बुझा देती है
नफरतें रहती इससे दूर सदा
स्नेह बंधन को बांध देती है।
आंखों की बनके जुबां खामोशी
बिन कहे हाले दिल बता देती है ।
मजबूरी का बनके आईना जब
लबों को सिल देती है खामोशी
तब उमडता है दर्द का जो सागर
खामोशी बड़ी खामोशी से बता देती है।
कभी बन के कटार चुभती है
कभी रस की धार लगती है
कभी लगती किसी की बेबसी
कभी चुपचाप हंसती रहती है।
लफ्जहीन होकर ये खामोशी
अपनी ताकत को पता देती है