खामोशी की अपनी जुबान होती है
बिन कहे बहुत कुछ कह देती है ।
दिल का दर्द छलकता है खामोशी में
आंखें चुपचाप रोती रहती हैं।
सौ फसादों को मिटा देती है
क्रोध की अगन बुझा देती है
नफरतें रहती इससे दूर सदा
स्नेह बंधन को बांध देती है।
आंखों की बनके जुबां खामोशी
बिन कहे हाले दिल बता देती है ।
मजबूरी का बनके आईना जब
लबों को सिल देती है खामोशी
तब उमडता है दर्द का जो सागर
खामोशी बड़ी खामोशी से बता देती है।
कभी बन के कटार चुभती है
कभी रस की धार लगती है
कभी लगती किसी की बेबसी
कभी चुपचाप हंसती रहती है।
लफ्जहीन होकर ये खामोशी
अपनी ताकत को पता देती है
बिन कहे बहुत कुछ कह देती है ।
दिल का दर्द छलकता है खामोशी में
आंखें चुपचाप रोती रहती हैं।
सौ फसादों को मिटा देती है
क्रोध की अगन बुझा देती है
नफरतें रहती इससे दूर सदा
स्नेह बंधन को बांध देती है।
आंखों की बनके जुबां खामोशी
बिन कहे हाले दिल बता देती है ।
मजबूरी का बनके आईना जब
लबों को सिल देती है खामोशी
तब उमडता है दर्द का जो सागर
खामोशी बड़ी खामोशी से बता देती है।
कभी बन के कटार चुभती है
कभी रस की धार लगती है
कभी लगती किसी की बेबसी
कभी चुपचाप हंसती रहती है।
लफ्जहीन होकर ये खामोशी
अपनी ताकत को पता देती है
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteवाह..!
ReplyDelete