पर सेवा परोपकार,
मानव के हैं संस्कार।
कर मानवधर्म अंगीकार,
करते सदा जगत-उपकार।
निस्वार्थ भाव से होते पूर्ण,
संस्कार होते संपूर्ण।
दीन-हीन दुखियों के उद्धारक,
अत्याचार के होते संहारक।
आबाल-वृद्ध की करते सेवा,
कभी नहीं थकते है देखा।
सेवा ही जीवन का लक्ष्य,
कर्म से सदा होती प्रत्यक्ष।
एक उदाहरण ऐसा जग में,
चांद सा चमके इस नभ में।
मदर टेरेसा नाम है उनका,
सेवा ही था धर्म जिनका।
कितनों का जीवन संवारा,
कितनों को दिया सहारा।
दीन-हीन की थी वे आशा,
देख उन्हें मिटती थी हताशा।
नाम अमर उनका है जग में,
चमकी बनके तारा नभ में।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
मानव के हैं संस्कार।
कर मानवधर्म अंगीकार,
करते सदा जगत-उपकार।
निस्वार्थ भाव से होते पूर्ण,
संस्कार होते संपूर्ण।
दीन-हीन दुखियों के उद्धारक,
अत्याचार के होते संहारक।
आबाल-वृद्ध की करते सेवा,
कभी नहीं थकते है देखा।
सेवा ही जीवन का लक्ष्य,
कर्म से सदा होती प्रत्यक्ष।
एक उदाहरण ऐसा जग में,
चांद सा चमके इस नभ में।
मदर टेरेसा नाम है उनका,
सेवा ही था धर्म जिनका।
कितनों का जीवन संवारा,
कितनों को दिया सहारा।
दीन-हीन की थी वे आशा,
देख उन्हें मिटती थी हताशा।
नाम अमर उनका है जग में,
चमकी बनके तारा नभ में।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित