Monday, January 28, 2019

मानव के संस्कार

पर सेवा परोपकार,
मानव के हैं संस्कार।
कर मानवधर्म अंगीकार,
करते सदा जगत-उपकार।
निस्वार्थ भाव से होते पूर्ण,
संस्कार होते संपूर्ण।
दीन-हीन दुखियों के उद्धारक,
अत्याचार के होते संहारक।
आबाल-वृद्ध की करते सेवा,
कभी नहीं थकते है देखा।
सेवा ही जीवन का लक्ष्य,
कर्म से सदा होती प्रत्यक्ष।
एक उदाहरण ऐसा जग में,
चांद सा चमके इस नभ में।
मदर टेरेसा नाम है उनका,
सेवा ही था धर्म जिनका।
कितनों का जीवन संवारा,
कितनों को दिया सहारा।
दीन-हीन की थी वे आशा,
देख उन्हें मिटती थी हताशा।
नाम अमर उनका है जग में,
चमकी बनके तारा नभ में।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित





4 comments:

  1. बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति...

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  2. सेवा और कर्म ही जिसका सर्वस्व था ... ऐसे लोग तारे की तरह होते हैं ...
    सुन्दर रचना ...

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  3. बहुत सुंदर रचना....आप को होली की शुभकामनाएं...

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