करिए नित गोधन की पूजा,
उस सम कोई और न दूजा।
गो साक्षात लक्ष्मी स्वरूपा,
गो संवर्धन संस्कृति अनुरूपा।
पंचगव्य अति पावन अमृत,
गोबर, मूत्र, दूध, दही और घृत।
कान्हा को गऊएं अति प्यारी,
गो रक्षण करें गो हितकारी।
गोवर्धन का अर्थ यह दूजा,
गोमाता की करिए सदा पूजा।
गोमाता सहें कष्ट अपारा,
गोरक्षण हो संकल्प हमारा।
गोसंवर्धन करो जीवन के हेतु,
कान्हा भक्ति में है गोमाता सेतु।
गोवर्धन भी गोबर से ही बनते,
नवान्नों के फिर भोग हैं लगते।
बिन गो के गोवर्धन न होंगे,
बिन गो सेवा कान्हा प्रसन्न न होंगे।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
उस सम कोई और न दूजा।
गो साक्षात लक्ष्मी स्वरूपा,
गो संवर्धन संस्कृति अनुरूपा।
पंचगव्य अति पावन अमृत,
गोबर, मूत्र, दूध, दही और घृत।
कान्हा को गऊएं अति प्यारी,
गो रक्षण करें गो हितकारी।
गोवर्धन का अर्थ यह दूजा,
गोमाता की करिए सदा पूजा।
गोमाता सहें कष्ट अपारा,
गोरक्षण हो संकल्प हमारा।
गोसंवर्धन करो जीवन के हेतु,
कान्हा भक्ति में है गोमाता सेतु।
गोवर्धन भी गोबर से ही बनते,
नवान्नों के फिर भोग हैं लगते।
बिन गो के गोवर्धन न होंगे,
बिन गो सेवा कान्हा प्रसन्न न होंगे।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
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