Thursday, October 11, 2018

मैं नारी हूँ मैं शक्ति हूँ

मैं सबला हूं पर अबला नहीं ,
मेरी शक्ति का तुम्हें भान नहीं। 

तुम जीत नहीं सकते मुझको, 
तुम हरा नहीं सकते मुझको। 

मैं सहती हूं पर कमजोर नहीं, 
मैं सुनती पर मजबूर नहीं । 

तुम भ्रम में जीवन जीते हो, 
मन ही मन खुश होते हो 

मेरे सब्र का प्याला छलकेगा, 
मेरा रौद्र रुप तब झलकेगा। 

तब मैं दुर्गा बन जाऊंगी, 
या फिर काली कहलाऊंगी। 

मैं स्वाभिमान की छाया हूं , 
रखती अपनी मर्यादा हूं। 

मेरी ममता मेरी शक्ति है, 
सतीत्व मेरा मेरी भक्ति है। 

मैं मां शक्ति का अंश बनूं, 
मैं उसके बताए पथ पर चलूं। 

अभिलाषा चौहान 
स्वरचित 






Saturday, October 6, 2018

इंतजार

प्रिय का करती इंतजार
हृदय हो रहा बेकरार
इक पल को नहीं करार
कब पूरा होगा इंतजार।

धीरे-धीरे गई रात गुजर
दिन के बीत रहे प्रहर
प्रियतम की नहीं कोई खबर
कैसे करूं उनका इंतजार !

घर-बाहर कहीं चैन न आवे
राह तकूं मेरा जी घबरावे
अब तो आओ प्रियतम प्यारे
अब और न होगा इंतजार।

तभी ईश्वर ने सुनी पुकार
प्रियतम छवि प्रत्यक्ष साकार
प्रेम मिलन ने लिया आकार
अब खत्म हुआ था इंतजार।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

Wednesday, October 3, 2018

राधा कृष्ण प्रेम रसधार

आज कृष्ण साथ मिला,
हाथों में उनका हाथ मिला।
तन मन में प्रेम तरंग उठी,
सृष्टि भी जैसे झूम उठी।
वन-उपवन भी हो गए पुष्पित,
बहने लगी मलय भी सुरभित।
चहक उठे तब पक्षी सारे ,
जब प्रियतम ने हाथ गहा रे।
प्रीत का रंग चहुंओर है छाया,
मिलन उसी से जो मनभाया।
झूम उठे धरती-गगन भी,
लौट आया देखो वसंत भी।
गुन-गुन करते भंवरे ऐसे,
सुर संगीत छिडें हो जैसे।
उड़ती तितलियां प्यारी- प्यारी,
महकने लगी प्रेम की फुलवारी।
बहने लगी है रस की धारा,
आनंदित संसार है सारा ।

अभिलाषा चौहान
(स्वरचित )

Tuesday, October 2, 2018

आदर्श कहां अब दिखते हैं?


प्रस्तुत रचना मेरे मन के भावों को अभिव्यक्त करती है। इसे अन्यथा न लेवें।

दादी नानी दूर हुई
बच्चों से कहानी दूर हुई
न होती आदर्शों की बातें
न सुनते अब अच्छी बातें
नेता अभिनेता दो चेहरे
अब बच्चों को दिखते हैं
किन आदर्शों की बात करें
जो कहीं नहीं अब दिखते हैं
जो घटता सबके समक्ष
अनुसरण उसी का होता है
बदल गई है सोच सभी की
बदल रहे संस्कार तभी
आदर्शों की बातें करना
बीते कल की बात हुई
भरा हुआ इतिहास हमारा
कितने अनुपम आदर्शों से
वर्तमान में कौन प्रभावित
होता है  इन आदर्शों से
बातें करते सब बडी़ बड़ी
सबको अपने सुख की पडी
अब कोई कहां उन आदर्शों पर
कभी खरा उतरता है ?


अभिलाषा चौहान
स्वरचित