मैं सबला हूं पर अबला नहीं ,
मेरी शक्ति का तुम्हें भान नहीं।
तुम जीत नहीं सकते मुझको,
तुम हरा नहीं सकते मुझको।
मैं सहती हूं पर कमजोर नहीं,
मैं सुनती पर मजबूर नहीं ।
तुम भ्रम में जीवन जीते हो,
मन ही मन खुश होते हो
मेरे सब्र का प्याला छलकेगा,
मेरा रौद्र रुप तब झलकेगा।
तब मैं दुर्गा बन जाऊंगी,
या फिर काली कहलाऊंगी।
मैं स्वाभिमान की छाया हूं ,
रखती अपनी मर्यादा हूं।
मेरी ममता मेरी शक्ति है,
सतीत्व मेरा मेरी भक्ति है।
मैं मां शक्ति का अंश बनूं,
मैं उसके बताए पथ पर चलूं।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
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