tag:blogger.com,1999:blog-43230084490101448602024-03-20T00:40:02.971+05:30अनुभूतियांAbhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.comBlogger27125tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-74666748948936953432019-12-29T08:27:00.000+05:302019-12-29T08:27:57.219+05:30अनजान रास्ता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सौम्या यही नाम था उसका,हमारे पड़ोस में रहने वाले तिवारी जी की बेटी थी।आज उसे घर लाया जा रहा था, कहां से? कहीं बाहर गई थी क्या सौम्या? हां, पिछले कई दिनों से दिखी भी नहीं थी।
मैंने पूछा भी था,तो टाल-मटोल वाला जबाव मिला था, लेकिन आज सारी कहानी सामने थी। आठवीं में ही पढ़ती थी
सौम्या! बड़ी चुलबुली और प्यारी बच्ची थी।
सुंदर भी इतनी कि देख कर मन नहीं भरता
था।बस यही बात उसकी दुश्मन बन गई।पता नहीं किसने उसे बरगलाया या फुसलाया कि कच्ची उम्र में वह प्रेम के सपने देखने लग गई। पढ़ाई से उसका ध्यान हट गया।आप सोच रहे होंगे कि मुझे यह कैसे पता?मैं सौम्या के स्कूल में ही टीचर थी।उसे पढ़ाती तो नहीं थी,पर हम शिक्षक जब एक साथ लंच वगैरह करने बैठते तब उसकी क्लासटीचर जरूर मुझसे उसके बारे में डिस्कस करती थी।
यह बात मैंने तिवारी जी से भी कहीं थी ,पर उन्होंने अनसुनी कर दी।आखिर उन्हें अपने बिजनेस और उनकी मिसेज को किटी पार्टी से फुर्सत ही कहां थी?
और फिर सौम्या लापता हो गई , बहुत पूछ-ताछ की गई कि सौम्या के बारे में..पर तिवारी जी ने पैसे का जोर दिखाकर पुलिस वालों को भी चुप कर दिया, लेकिन ऐसी बातें छुपती है भला?
उड़ती-उड़ती खबर हर जगह थी कि सौम्या किसी के संग भाग गई..बदनामी के डर से इस बात को खूब दबाया गया।पर मुझे पूरा
भरोसा था कि सौम्या किसी मुसीबत में घिर गई है और आज सौम्या घर आ रही है।
उससे मिलने की बड़ी इच्छा थी।वह मासूम बच्ची जब गाड़ी से उतरी तो उसकी स्थिति उसका दर्द बयान कर रही थी।उसने एक नजर उठा कर मुझे देखा.. आंखों में आंसू छलक रहे थे,ऐसा लग रहा था कि वह न जाने कबसे रो रही होगी! चेहरे पर चोट के निशान भी स्पष्ट दिख रहे थे। तिवारी जी उसे लेकर घर के अंदर चले गए।मेरा मन उससे मिलने को बेताब था। लेकिन कैसे?
कुछ दिन और निकल गए.. सौम्या स्कूल भी नहीं आई..घर से बाहर भी नहीं निकली,एक अजीब सा सन्नाटा उनके घर पसरा था,आखिर मन नहीं माना और मैं उनके घर चली गई..आप यहां कैसे?क्या कुछ काम था!सौम्या की मम्मी पूछ बैठी।
जी!स्कूल में सभी सौम्या के बारे में पूछ रहे हैं,आप उसे स्कूल भेजिए।आखिर ऐसी क्या परेशानी है?अगर कुछ हुआ भी है तो उसे बदलने की कोशिश कीजिए।इस तरह तो बच्ची घुट जाएगी।
सौम्या की मम्मी मेरी बातों को सुनकर स्तब्ध रह गई-क्या आपको पता है?
नहीं!पर ऐसी बातें छुपती नहीं।अगर आप अपनी बच्ची से प्यार करती है तो उसका सपोर्ट सिस्टम बनिए ,नकि उसे जिंदगी से
दूर एक कैद भरी जिंदगी जीने को मजबूर कीजिए।
सौम्या की मम्मी फूट-फूटकर रोने लगी। मैंने उनके आंसू पोंछे और हिम्मत से काम लेने को कहा और सौम्या से मिलने की इच्छा प्रकट की।
उन्होंने एक कमरे की और इशारा किया। मैं
कमरे में पहुंची।सिकुड़ी-सिमटी सौम्या बिस्तर पर डली थी,जैसे बरसों से बीमार हो,ऐसा लग रहा था कि कोई गुबार उसके मन से उमड़ने को बेताब था। सौम्या!बेटा मैं
आई हूं,उठो जरा, बात करनी है तुमसे!
वह उठी.. आंखों के नीचे स्याह घेरे,पलकें सूजी हुई,होठ़ सूखे हुए,उलझे बाल,डर से कुम्हलाया मुख। देखकर दिल दहल उठा।
ये क्या हाल बना रखा है तुमने,देखा है अपने को आइने में,सब तुम्हारे बारे में पूछते हैं स्कूल में,पढ़ना नहीं है क्या आगे?
आंटी !साॅरी मैम!मेरी कोई गलती नहीं थी।बस मैं भटक गई थी और एक अनजान डगर पर चली गई थी।कहते हुए वह फूट-फूट कर रोने लगी।
रो लो बेटा!जब शांत हो जाए मन तो बताना कि तुम्हारे साथ क्या हुआ?
मैम!वह स्कूल के रास्ते में रोज मिलता था।बस मुझे एकटक देखता रहता,मुझे बहुत अच्छा लगता था,सब मुझे सुंदर जो कहते थे।बस यही मेरी गलती है कि मैं उसके आकर्षण में बंधती चली गई।वह मुझसे मीठी-मीठी बातें करने लगा।मुझे नहीं पता था कि दुनिया कितनी खराब है, मैं उसकी बातों में उलझती चली गई,हम रोज मिलते,वह कहता कि दुनिया बहुत सुंदर है और तुम इस दुनिया को अपनी सुन्दरता से जीत सकती हो।तुम कुछ नया करो।मुझे नहीं पता था ,पर शायद उसने भांप लिया था कि मुझे कैसी बातें सुनना पसंद है।और फिर एक दिन उसने कहा कि यहां क्या रखा है तुम मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें इस खूबसूरत दुनिया की सैर कराऊंगा।
बहक गई थी मैं,उसके कहने पर घर में चोरी की,खूब सारे पैसे और कपड़े बैग में भरकर
उसके साथ निकल गई "अनजान डगर"पर।वह मुझे यहां-वहां घुमाता रहा।उसने मेरे साथ जबरदस्ती की।मेरे पास कोई चारा नहीं था।उसकी बातों को मानने के अलावा।घर पर फोन करने की हिम्मत नहीं हुई क्योंकि मम्मी-पापा शायद मेरी बात नहीं समझते और फिर एक दिन हमारे पैसे खत्म हो गए।उस रात को हम भूखे ही सो गए थे ।रात के बारह बजे वह कुछ खाना और कोल्डड्रिंक लेकर आया।मैंने पूछा -इतनी रात को ये सब!हां मुझे भूख के कारण नींद नहीं आ रही थी सो होटल वाले से उधार ले आया।हमेशा की तरह उस पर विश्वास कर लिया। लेकिन मुझपर बेहोशी छा रही थी।फिर मैंने
महसूस किया कि पूरी रात मेरे साथ दरिंदगी का खेल खेला गया। मैं बेजान लाश सी पड़ी थी।सुबह उठा ही नहीं जा रहा था। मैंने उससे पूछा-क्या हुआ रात मेरे साथ?इतना दर्द क्यों?
वह कुटिलता से हंसा और चला गया। मैं दर्द से तड़पती बिस्तर पर डली थी,तभी एक हट्टा-कट्टा मर्द कमरे में घुसा।उसे देख मैं चीखी।उसे आवाज लगाई।पर वह न आया। मैंने विरोध करने बहुत कोशिश की,पर हार गई। फिर तो यह सिलसिला ऐसा चला कि मैं बिस्तर से ही लग गई,वह दिन में दो-तीन लोगों को ले आता, पैसे गिनकर जेब में रखता और मुझे उनके हवाले कर देता।मनचाहे तरीके से वे मेरे शरीर को नोंचते-खसोटते।उस दिन मैंने हिम्मत करके उससे पूछ ही लिया-ये है तुम्हारा प्यार,तुम्हारे ऊपर भरोसा करके ,तुम्हारा हाथ थाम कर मैं इस अनजान डगर पर चली आई और तुमने मुझे वेश्या बना दिया।ऐसा क्यों किया?
वह कुटिलता से हंसा।प्यार और मैं,इससे पेट नहींभरता,उसके लिए पैसा चाहिए और पैसा कमाने का ये आसान उपाय है। चुपचाप वही कर जो मैं कहूं। नहीं तो बेच दूंगा तुझे कोठे पर।समझ ले यही मेरा प्यार है कि तू अभी तक यहां है,ऐसी न जाने कितनी अभी तक कोठे पर पहुंच गई है और गुमनामी की ज़िंदगी जी रही हैं। जितना खुश होके तू ये सब करेगी ,उतना ही पैसा ज्यादा मिलेगा।देख तेरी सुंदरता के सही दाम लगवा दिए मैंने,ये रख पैसा कस्टमर आने को है ,टिपटाप हो जा।
मैं पत्थर बन गई थी।अब तो घर वापस आने का भी कोई फायदा नहीं था। मां-बाप को तो शायद इज्जत ज्यादा प्यारी थी ,सो उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट भी नहीं कराई थी शायद।यही सोच हथियार डाल दिए।वह मेरा भरपूर उपयोग कर रहा था।अब वह मुझे कस्टमर के साथ बाहर भी भेज देता।उसी चक्कर में होटल पर पड़ी रेड में , मैं पुलिस वालों के हाथ लग गई, उन्होंने मुझसे सब पूछा तो मैने बता दिया।तब मम्मी-पापा को बुलाकर उन्हें सौंप दिया गया।पता नहीं कितने लोगों ने मेरी आत्मा
को कुचला आंटी! कहते-कहते वह मेरे गले लग गई।मिसेज तिवारी यह सब बाहर खड़ी सुन रही थी ,बेटी की दर्द भरी दास्तान ने उनकी रूह को झिंझोड़ कर रख दिया।दौड़कर अंदर आई-मेरी बच्ची!माफ़ कर दे।तू इस मुसीबत में हमारे कारण फंसी।यदि हमने तुझे इन अनजान रास्तों से
वाकिफ कराया होता या तेरा भरोसा जीता
होता तो तुझे ये कष्ट न झेलना पड़ता।
मां-बेटी फूट-फूटकर रो रहीं थी। थोड़ी देर बाद सब शांत हुआ।देखिए !मुझे आपसे यही कहना है कि आप इसके साथ हर कदम पर खड़ी रहें।इसकी मनोदशा को समझें, कोशिश करें कि वह उस दर्द या तकलीफ को जल्दी भूल जाए और फिर से
अपनी जिंदगी की शुरूआत कर सके।यह उस दर्द से जितनी जल्दी अनजान हो जाए, वही इसके लिए बेहतर है।बेटी मां की गोद में दुबकी हुई थी।और मां उसके दर्द को अपने आंचल में समेटरही थी।मैं आंखों में
उम्मीद लिए वहां से चली आई थी।बस एक
सवाल मन को बैचेन कर रहा था-कि "ये अनजान रास्ते कबतक मासूम बेटियों की जिंदगी को जहन्नुम बनाते रहेंगे।"
</div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-6198989136001173192019-12-27T18:45:00.001+05:302020-11-18T21:23:49.716+05:30रिश्तों की पोटली<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सुबह से रमा अपने कमरे में बैठी एक तस्वीर को निहार रही थी।अभी तक किसी ने भी<br />
फोन पर उनका हालचाल नहीं पूछा था।ऐसा लग रहा था कि स्वार्थ के कारण सारे रिश्ते भी दम तोड़ चुके थे।<br />
मात्र अठारह की थी रमा,जब वह इस घर में<br />
ब्याह कर आई थी,कितने सारे रिश्ते उसकी<br />
झोली में आ गए थे। बेटी से पत्नी बनते ही वह,बहू,भाभी,मां,जेठानी-देवरानी न जाने कितने रिश्तों में बंध गईं।उसने हर रिश्ते को<br />
बड़ी खूबसूरती से निभाया , लेकिन सबकी<br />
खुशी में अपनी खुशी ढूंढने वाली रमा सदा<br />
अपने दुख में अकेली रही।पति की जैसी आय होती है,पत्नी का वैसा ही सम्मान होता है।अपने तीनों भाईयों में उसके पति की आय<br />
सबसे कम थी।घर में हर बात में इसकी तुलना जरूर होती। सास-ससुर भी बातों-बातों में उलाहना जरूर देते-"अरे हम तो नौकरी वाली चाहते थे, कहां से ये पल्ले पड़<br />
गई।हमारे बेटे की नौकरी अच्छी नहीं थी,सोचा था दोनों कमाएंगे तो गृहस्थी की<br />
गाड़ी अच्छी चल जाएगी।"<br />
वह हंसते हुए कह देती-आप क्यों चिंता करती हैं मांजी ,हम नमकरोटी खाकर भी<br />
सदा खुश रहेंगे।<br />
समय निकला। दोनों बड़े भाई अलग हो गए।<br />
अब उनके बच्चे बड़े हो गए थे, उन्हें अब किसी की जरूरत नहीं थी। सास-ससुर उसके ही साथ थे।ननदें भी अब तीज-त्योहार<br />
को ही आती ।उसके दोनों बच्चे इंजीनियरिंग<br />
कर रहे थे। दोनों की अच्छी जाब लगी और<br />
दोनों विदेश चले गए। सास-ससुर की अवस्था ठीक नहीं थी,रमा और उसके पति<br />
उनकी देखभाल करते रहे।कोई उनकी खबर<br />
लेने भी नहीं आता।सास की निगाहें द्वार पर<br />
टिकी रहती कि शायद उनके बड़े लड़कों या<br />
लड़कियों में कोई मिलने आए और जब निराश हो जाती तो सारा गुस्सा रमा पर निकल जाता कि उसने ही सबको रोक दिया<br />
है आने से।<br />
अब रमा की सहनशक्ति जवाब देने लगी थी।पति अक्सर बीमार रहते।ससुर जी शांत हो<br />
चुके थे और सासु मां और भी चिड़चिड़ी।<br />
वह चुपचाप पति और सास की सेवा में लगी<br />
थी। बच्चों के फोन आते -मम्मी! बहुत हुआ<br />
अब ,दादी को ताऊजी के छोड़ दो,आप पापा को लेकर हमारे पास आ जाओ।पापा<br />
के लिए इतना टेंशन ठीक नही।"<br />
लेकिन वह कैसे छोड़ दें?आगे से तो कोई उन्हें ले जाने को तैयार नहीं था और एक<br />
दिन सासू जी भी चली गई ईश्वर के पास।<br />
पूरा कुनबा जुटा।दुख कम .. संपत्ति को लेकर विचार-विमर्श ज्यादा।कितना क्या<br />
छोड़ गए हैं ,इस पर अटकलें लगीं,पुश्तैनी<br />
जमीन-जायदाद के हिस्से बांट होने लगे।<br />
बड़े भाई मकान बेच कर पांच हिस्सों में<br />
बांटने की बात करने लगे थे।<br />
उसके दोनों बच्चे भी आए थे ,बोले-मम्मी-पापा अब भी यहीं रहना है,या चलना है<br />
हमारे साथ।<br />
हां!हां बेटा ले जाओ इन्हें,अब तबियत भी<br />
ठीक नहीं रहती, यहां अकेले पड़े-पड़े क्या<br />
करेंगे।अब इतने बड़े घर को रखने से तो<br />
कोई फायदा नहीं।<br />
मकान-जमीन सब बिका।हिस्सा -बांट हुआ।<br />
और सब चल दिए अपने रास्ते पर।पति यह<br />
सब देख-सुन बहुत टूट से गए थे।एक दिन<br />
बोले-रमा!माफ़ कर सकोगी मुझे!मैं तुम्हें<br />
जीवन की कोई खुशी नहीं दे पाया।रिश्तों<br />
के जाल में ऐसा उलझाया कि न तुम अपने<br />
लिए जी सकीं ,न मेरे लिए।काश!<br />
क्या कह रहे हो जी!देखो मुझे लगता है मैं<br />
दुखी हूं,अरे मैंने तो हर रिश्ते को भरपूर जिया<br />
और जीवन का खूब आनंद उठाया।अरे अगर<br />
हर कोई रिश्तों में स्वार्थ ढूंढने लगे तो फिर यह दुनिया तो रहने लायक ही नहीं रहेगी।बस अब आप ठीक हो जाओ।<br />
बच्चों के पास आकर पति के स्वास्थ्य में<br />
बहुत सुधार आया था। धीरे-धीरे सब कुछ<br />
ठीक हुआ। दोनों बच्चों के विवाह हो गए।<br />
लड़की ससुराल चली गई।प्यारी-सी बहू आ<br />
गई।एक दिन पुरानी संदूक को साफ करते<br />
हुए वह तस्वीर निकल आई।बड़े जतन से<br />
रमा उस तस्वीर को पोंछ रही थी।अरे मम्मी!<br />
ये किसकी तस्वीर है?दिखाओ।<br />
फोटो देखकर वह पूछने लगी-ये इतने सारे लोग कौन है,मम्मी !अरे आप और पापा कितने सुंदर लग रहे हो।<br />
रमा हंसते हुए बोली-ये सब अपने हैं बेटा!जब मेरा विवाह हुआ था तो मेरी झोली में<br />
ये सारे रिश्ते आए थे।ये मेरी पूंजी है,जब बीते<br />
दिनों की याद आती है तो इन्हें सहेज लेती हूं। कितने अच्छे थे वे दिन।<br />
और मम्मी ये लाल कपड़े की पोटली में क्या<br />
है?दिखाओ न प्लीज।<br />
इसमें देख ले बेटा!ये गठजोड़ा है,इसी को पहने हुए मैंने तेरे पापा के साथ उस पुश्तैनी घर में प्रवेश किया था, जहां मुझे एक भरा-पूरा परिवार मिला था,अनमोल रिश्ते मिले थे,<br />
ये बात और है कि वक्त के साथ इन सबपर स्वार्थ की धूल चढ़ गई और शायद ये सब हमें<br />
भूल गए।<br />
अरे मम्मी आप तो दुखी हो गई!चलो मैं आपको नाश्ते के लिए बुलाने आई थी।<br />
हां चलो बेटा!कहते हुए रमा ने रिश्तों की पोटली को सहेजकर वापस रख दिया।उसकी आंखों की कोर पर एक आंसू की बूंद<br />
झिलमिला रही थी।<br />
<br />
<br />
<br />
<br /></div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-7416442415026696352019-12-27T18:41:00.000+05:302019-12-29T08:33:11.275+05:30सनक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
राघवन की सनक से पूरा शहर वाकिफ था।<br />
<div>
पहले वे सनकी या पागल कहलाते थे, लेकिन धीरे-धीरे लोगों ने उनकी सनक का सम्मान करना शुरू कर दिया।आखिर उनकी</div>
<div>
सनक का राज क्या था और क्या थी उनकी सनक ,जिसके लिए उन्हें कई सम्मान भी मिल चुके थे।</div>
<div>
राघवन की उम्र उस समय कोई अटठावन साल की रही होगी,जब उनके जीवन में वह</div>
<div>
काला दिन आया।उनका तीन प्राणियों का छोटा-सा परिवार था।वे,उनकी पत्नी और पुत्र। सब कुछ बढ़िया चल रहा था।वे स्वयं</div>
<div>
दो साल में रिटायर होने वाले थे ।पुत्र साफ्टवेयर इंजीनियर बन कर मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत था।अब उसके विवाह की</div>
<div>
तैयारियां चल रही थी। परिवार में जमकर खुशियां बरस रहीं थीं।कहते हैं ना- कि खुशियों को नजर लग जाती है, यहां भी वही</div>
<div>
हुआ।बारिश के चलते शहर की सड़कों पर</div>
<div>
गड्ढे हो गए थे और दुर्घटनाएं बढ़ गई थीं।उस दिन जमकर बारिश हुई थी ,राघवन का पुत्र</div>
<div>
चैतन्य आफिस में फंसा हुआ था ।बारिश बंद</div>
<div>
होने पर उसने मोटरसाइकिल निकाली और</div>
<div>
घर की ओर चल पड़ा,पानी के जमाव के कारण गड्ढा नहीं दिखा और वह दुर्घटना ग्रस्त</div>
<div>
हो गया।महीना भर कोमा में रहने के बाद उसने सदा के लिए दुनिया को अलविदा कह दिया।राघवन और उनकी पत्नी पत्थर बन गए थे।इकलौते पुत्र को खोने का सदमा क्या होता है ,यह उन्हें देखकर ही समझा जा सकता था।उनकी पत्नी अपना होशोहवास खो चुकी थी।राघवन को पत्नी को सम्हालने के लिए अपने सीने पर पत्थर रखना पड़ा। लेकिन उनका मन अवसाद से घिर गया था।</div>
<div>
सड़क का हर गड्ढा उन्हें अपने पुत्र का हत्यारा प्रतीत होता।ऐसे में उन्होंने एक प्रण लिया कि वे सड़क के हर गड्ढे को अपने खर्चे स्वयं ही भरेंगे।अब जहां भी कहीं गड्ढा दिखता ,राघवन वहां अपनी गाड़ी लेकर पहुंच जाते और सामान निकालकर गड्ढा भरने लगते।लोग उन्हें सनकी कहते ,मजाक बनाते , यहां तक कि पागल भी कह देते। धीरे-धीरे लोगों को उनकी सनक का उद्देश्य पता चला तो सभी उनका सम्मान करने लगे।</div>
<div>
उनका साथ देने के लिए कई लोग भी आगे</div>
<div>
आने लगे।न जाने कितनी जिंदगियां उजड़ने</div>
<div>
से बच गई।राघवन सनकी नहीं थे,पर अपने बेटे की मृत्यु से उन्हें जीवन का एक लक्ष्य मिल गया था।किसी और के घर का चिराग ये सड़कें ना लीलें,वे अपनी और से पूरा प्रयास कर रहे थे।यही उनकी अपने बेटे को<br />
सच्ची श्रद्धांजलि थी।<br />
<br />
अभिलाषा चौहान<br />
स्वरचित मौलिक<br />
<br />
(सत्य घटना पर आधारित)</div>
</div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-19437247945237351922019-12-20T10:11:00.000+05:302019-12-20T10:11:15.510+05:30हार्ट अटैक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पड़ोस के घर में अफरातफरी का माहौल देख रमेश जी वास्तविकता जानने के लिए<br />
<div>
जा पहुंचे।पता चला कि शर्मा जी को हार्ट अटैक आया था और एंबुलेंस से उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा था।पड़ोसी धर्म</div>
<div>
निभाते हुए रमेश जी भी साथ चले गए।</div>
<div>
डाक्टर ने चेकअप के बाद स्पष्ट कर दिया कि माइनर हार्ट अटैक था,लेकिन संकट टला</div>
<div>
नहीं है,आगे क्या करना ये संपूर्ण जांच के बाद ही पता चलेगा।</div>
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शर्माजी होश में आ चुके थे ।रमेशजी को देखते ही बोले-बरबाद हो गया यार,तेरी बात</div>
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नहीं मानी और आज यहां पहुंच गया।</div>
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क्यों क्या हुआ,कौनसी बात नहीं मानी तूने</div>
<div>
यार!</div>
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तूने पेपर नहीं पढ़ा आज का ,अरे!वो कापरेटिव बैंक जिसमें तूने पैसा जमा करने के लिए मना किया था।उसपर ताला लग गया यार!धोखा हो गया मेरे साथ।सारी जमा-पूंजी डूब गई।</div>
<div>
क्या?? मुझे नहीं पता।कब हुआ ये ?</div>
<div>
शर्माजी पछता रहे थे। बार-बार एक ही बात</div>
<div>
दोहरा रहे थे कि तूने सच कहा था कि इनमें</div>
<div>
इन्वेस्ट मत कर ।आजकल बहुत फ्राड हो रहा है। इसमें पैसा लगाना,आ बैल मुझे मार</div>
<div>
वाली कहावत चरितार्थ करना है।मैंने नहीं सुना।</div>
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रमेशजी चुप थे।क्या कहते !बस इतना ही बोले तू अपनी तबियत देख।ये सब मत सोच।अब मैं जाता हूं, शाम को आऊंगा।</div>
<div>
लौटते हुए वे यही सोच रहे थे कि लालच</div>
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और गलत लोगों के फेर में पड़कर आदमी</div>
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स्वयं का कितना नुक्सान कर लेता है जबकि</div>
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आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आती है।पर जल्दी समय में ज्यादा लाभ के फेर में आ बैल मुझे मार को आमंत्रित करना तो मूर्खता</div>
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है।</div>
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<br /></div>
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अभिलाषा चौहान</div>
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<br /></div>
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<br /></div>
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Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-63278320587973572562019-12-20T10:10:00.000+05:302019-12-20T10:10:08.971+05:30बोझ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
रमा की आंखों से आंसू बहना बंद नहीं हो रहे थे।वह पढ़ना चाहती थी,जीवन में कुछ<br />
बनना चाहती थी,पर घरवाले तो जैसे कुछ<br />
सुनना ही नहीं चाहते थे।उसकी हर बात पर<br />
घर में तू-तू-मैं-मैं होने लगती।अभी दसवीं की<br />
परीक्षा दी है उसने और बापू हैं कि ब्याह के पीछे पड़े हैं।रोज उसकी भावनाओं की हत्या<br />
हो रही थी।<br />
और वह दिन भी जल्दी आ गया ।दस साल बड़े एक व्यक्ति को उसके जीवनसाथी के<br />
रूप में चुन लिया गया था।वह छोटी सी दुकान चलाता था।रमा हंसना भूल गई थी।<br />
इससे घर में किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता था कि वह क्या सोचती है,बस अपना बोझ दूसरे के गले में बांधने की तैयारी हो रही थी।<br />
विवाह हुआ ,वह दुल्हन बन के आ गई। यहां<br />
भी वह सिर्फ उपभोग की वस्तु थी।दिनभर काम और रात को पति की इच्छाओं की पूर्ति,ऊपर से दहेज की मांग ।<br />
रमा समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या करे?<br />
क्या बनना चाह रही थी और क्या बन गई।<br />
अब तो रोज घर में झगड़े और होने लगी।दहेज की मांग बढ़ती जा रही थी।पिता तो पल्ला झाड़ बैठे थे ,अब रोज उसकी कपड़ों की तरह धुलाई होती।उसके आंसू देखने वाला कोई नहीं था।घर के सभी लोग उसे ताना मारते।पति तो हैवानियत की हदें पार<br />
कर चुका था।रमा एक जिंदा लाश बन गई थी।आखिर में तंग आकर उसने फांसी लगा<br />
ली।इस बात को परिवार वालों ने किसी तरह<br />
दबा दिया।सब जगह अफवाह फैला दी कि<br />
बीमार थी। आनन-फानन उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया। माता-पिता भी<br />
आए उसके और ससुराल वालों की बात को<br />
सच मान बैठे।आज रमा को गए एक साल हो गया।उसके पति ने दूसरा विवाह कर लिया। किसी को क्या फर्क पड़ा?कौन था रमा का हत्यारा?ये समाज या उसके माता-पिता या ससुराल वाले?<br />
<br />
अभिलाषा चौहान<br />
स्वरचित मौलिक<br />
<br />
<br />
<br /></div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-31933642304739360722019-12-20T10:09:00.002+05:302020-11-16T22:54:49.119+05:30बचत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अचानक हुई नोटबंदी से हजार-पांच सौ के नोट बैंक में जमा कराने के लिए लंबी-लंबी कतारें लगी थी।रमेश के पास भी कोई दस हजार रुपए थे ,उसने बड़ी मुश्किल से वे बैंक में जमा करवा पाए थे।उसके आफिस में यह <div>
बात रोज ही होती रहती थी।सभी परेशान थे क्योंकि उनकी नजर में जो धनराशि थी ,वह उन्होंने जमा करवा दी थी,पर इन पत्नियों का क्या?</div><div><br /></div>
<div>
अशोक जी बेचारे परेशान थे कि कल उनकी पत्नी ने पचास हजार निकाल कर रख दिए ,अब बताओ इतने पैसे कहां से आए उसके पास,सो नहीं बता रही!सब यही बातें कर रहे थे।रमेश सोच रहा था कि वह बच गया उसकी पत्नी के पास कोई बचत नहीं है।उसने पूछा कि आप लोगों की पत्नियों के पास इतना पैसा कहां से आया?एक-दो लोग बोले कि हमारी पत्नियां तो जाॅब करती है।बाकी बोले कि -वे घर खर्च से बचा लेती हैं।</div><div><br /></div>
<div>
अच्छा!पर मेरे घर में तो मेरी पत्नी ने घर खर्च में से कुछ भी नहीं बचाया।अभी लोन की एक किश्त बाकी थी,तब मांगे मैंने उससे तो बोली-गिन कर तो देते हो ,उसमें क्या बचेगा!और मैं उन पत्नियों की तरह नहीं हूं,जिनकी नजर सदैव पति के बटुवे पर रहती है।</div><div><br /></div>
<div>
'हां यार ! मैंने तो कई बार पकड़ा है अपनी पत्नी को बटुवे पर हाथ साफ करते हुए' दीप मुस्कराकर बोला।बटुआ पुराण चलते-चलते पांच बज गए।सभी ने अपने-अपने घरों की ओर रूखसत किया।</div><div><br /></div>
<div>
रमेश घर पहुंचा तो पत्नी जी को बैचेनी से टहलते पाया।पूछने पर कुछ न बोली ।रमेश को कुछ समझ में न आया तो पूछा-तबीयत तो ठीक है न तुम्हारी!आज चेहरे का रंग क्यों उड़ा हुआ है।</div><div><br /></div>
<div>
वे चुप रहीं ,फिर थोड़ी देर बाद एक बंडल सा लेकर उसके पास आई और पकड़ा दिया। ये क्या हैं? कहां से आया?</div><div><br /></div>
<div>
रमेश ने यह कहते हुए बंडल के ऊपर से कपड़ा हटाया तो उछल कर खड़ा हो गया।</div><div><br /></div>
<div>
हजार-पांच सौ के नोटों की गड्डी। ये क्या हैं? और किसका है , मैं क्या करूंगा इसका?</div><div><br /></div>
<div>
ताबड़तोड़ प्रश्नो की बौछार कर दी रमेश ने।</div><div><br /></div>
<div>
वे आंखों में आंसू भरे मासूमियत से बोली-जी ये अपने ही हैं, मैंने जमा किए हैं।</div><div><br /></div>
<div>
क्या!!पर अभी तो पिछले महीने तुमसे मैंने पूछा था कि लोन की किश्त देनी है, दस-बीस हजार पड़े हों तो दे दो,तब तो तुमने मना कर दिया था,मुझे दोस्त से उधार लेने पड़े।</div><div><br /></div>
<div>
जी,वो छोड़ो ,अब आप इन्हें बदलवा दो बस।</div><div><br /></div>
<div>
बदलवा दो,आसान काम है क्या?आए कहां से?</div><div><br /></div>
<div>
जी घर खर्च में से बचाए।</div><div><br /></div>
<div>
इतने सारे सिर्फ घर खर्च या फिर चुपके-चुपके मेरे बटुए पर भी हाथ साफ किया था।</div><div><br /></div>
<div>
जी वो तो हर पत्नी का अधिकार होता है , मैंने कर लिया तो कौन-सा गुनाह कर दिया!</div><div><br /></div>
<div>
बड़ी मासूमियत से जबाव दे वे हंसने लगी।</div>
<div>
रमेश सिर पकड़कर बैठ गया,उसे समझ में आ गया था कि पत्नियों को पति से ज्यादा पति के बटुए की चिंता होती है।</div>
<div>
<br /></div>
<div>
अभिलाषा चौहान</div>
<div>
स्वरचित मौलिक</div>
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</div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-92195545977641101092019-12-13T08:51:00.000+05:302019-12-13T08:51:28.116+05:30अनंत यात्रा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
रामनाथ के परिवार में आज खुशी का माहौल था।होता भी क्यों न,आखिर उनके<br />
दोनों बेटों का विवाह तय हुआ था। विवाह भी दो सगी बहनों से।एक नया रिश्ता बनने जा रहा था, खुशियों ने उनके घर को महका<br />
दिया था। रामनाथ का बड़ा बेटा बैक में और<br />
छोटा बेटा होटल में मैनेजर थे ।संयोग से होने<br />
वाली बहुएं भी सरकारी स्कूल में शिक्षिका थीं। विवाह की तिथि छह माह बाद तय हुई थी।घर में नित नयी योजनाएं बन रहीं थीं।<br />
कैसे करना है ,क्या करना है,क्या थीम रखी<br />
जाएगी विवाह स्थल की।कौन कैसे कपड़े पहनेगा,कार्ड कैसा होगा?<br />
सभी रिश्तेदारों को बढ़िया रिटर्न गिफ्ट दिए जाएंगे।यही योजनाएं बनते-बनते और पूरा<br />
करते पांच माह निकल गए।सबसे पहला मेहमान उनके घर आने वाला था ,उनकी बड़ी बहन और बच्चे।उनकी ट्रेन सुबह चार<br />
बजे आने वाली थी , दोनों भाई बहन को<br />
लाने स्टेशन जाने के निकल चुके थे ,लेकिन<br />
अनहोनी का किसी को भी आभास नहीं था।<br />
घर से स्टेशन पहुंचने में बीस मिनट लगते थे।<br />
लेकिन रात में ट्रेफिक कम होने की वजह से<br />
समय कम लगता था, दोनों भाई खुशी-खुशी<br />
आराम से गाड़ी चलाते हुए जा रहे थे।सामने<br />
रेड लाइट थी ।सिग्नल हरा होने पर उन्होंने<br />
अपनी गाड़ी आगे बढ़ाई,पर ....उनकी वह यात्रा कभी पूरी नहीं हो सकी,रोंग साईड से<br />
एक ट्रोला आया और उनकी गाड़ी को टक्कर मार के पलट गया।कार के ऊपर ट्रोले में लदी नमक की बोरियां गिर पड़ी और कार<br />
पूरी तरह से उन बोरियों में दब गई। ट्रोले का<br />
ड्राइवर भाग गया था ,उसे एक पल के लिए भी यह ख्याल न आया कि कार में कोई जिंदा हो सकता है।काफी देर बाद किसी भले-मानुष ने पुलिस को फोन किया, पुलिस आई तो उसे भी नहीं पता चला कि इन बोरियों के नीचे एक कार दबी है,उधर बहन<br />
लगातार भाईयों को फोन कर रही थी ,रिंग जा रही थी ,पर कोई नहीं उठा रहा था, आखिर उसने पिता को फोन किया, रामनाथ<br />
अचंभित हो उठे आखिर कहां गए वे दोनों?<br />
उन्होंने बेटी को कहा कि वो रूके वे आ रहें हैं,उसी चौराहे से ,उसी रेडलाइट के पास से<br />
वे गुजरे,इतना भयंकर एक्सीडेंट देख मन में<br />
सोचा ,कितना लापरवाह है ये ट्रोलावाला! अच्छा है रात में ट्रेफिक नहीं रहता, नहीं तो<br />
पता नहीं किसका घर उजड़ता !?<br />
उन्हें क्या पता था कि उनका घर ही उजड़ चुका है। बेटों की चिंता सता रही थीं। कहां गए?बेटी को लेकर आ चुके थे।अब बेटों को<br />
ढूंढने निकले ,सुबह के सात बज चुके थे,उसी<br />
चौराहे से फिर गुजरे,नमक की बोरियां हटाई<br />
जा रहीं थी,उसके नीचे कार झलकने लगी थी, वहां खड़ी भीड़ भौंचक्की हो उठी थी।<br />
रामनाथ जी परेशान से वापस आ रहे थे।<br />
पुलिस, एंबुलेंस देख ठिठक गए ।क्या हुआ<br />
भाई? और एक्सीडेंट हो गया क्या? नहीं<br />
रात की ही दबी है एक कार बोरियों के नीचे!<br />
किसी को पता ही नहीं चला,पता नहीं कौन है बेचारे?<br />
रामनाथ जी के पैर कांप रहे थे..आगे बढ़े और जैसे ही कार देगी..गश खाकर गिर पड़े।<br />
उनका संसार उजड़ गया था.. बेटों के शव<br />
निकालें जा चुके थे,यदि उस समय ही वह<br />
ट्रोलेवाला पुलिस को सूचित कर देता तो<br />
शायद कोई बच जाता।कैसी यात्रा पर निकल<br />
गए थे बेटे! जहां खुशियों को होना चाहिए था, वहां मातम पसरा हुआ था।<br />
<br />
अभिलाषा चौहान<br />
स्वरचित मौलिक<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
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Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-70073333111085333902019-12-13T08:50:00.000+05:302019-12-13T08:50:27.842+05:30श्राद्ध<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
श्रद्धा से ही श्राद्ध की उत्पत्ति हुई है।श्रद्धा के<br />
बिना कैसा श्राद्ध ? लेकिन यह हमारे समाज<br />
की एक कुरीति है जिसका जीते जी कभी सम्मान नहीं किया जाता ,उसका श्राद्ध बड़े<br />
धूमधाम से किया जाता है ,ऐसा दिखावा किस काम का?<br />
हमारे पड़ोस में जानकी काकी का श्राद्ध बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा था।इक्यावन ब्राह्मणों के साथ, घर-परिवार , नाते-रिश्तेदार,मित्रगणों को भी निमंत्रण दिया गया था। हमें भी न्योता दिया गया था। पड़ोसी धर्म तो निभाना ही था।सो गए,कोई कमी नहीं छोड़ी थी सपूत ने मां के श्राद्ध में। पंडित आशीष लुटा रहे थे। भारी-भरकम दान-दक्षिणा के बदले में कुछ तो देना ही था।<br />
मेरा मन वितृष्णा से भर उठा।सुबकती हुई जानकी काकी याद आ गई,कितनी उपेक्षा और कितना अपमान सहा था उन्होने ,बिस्तर<br />
में पड़ी किस्मत को रोती रहती थी।दीनू काका ने बड़ी मेहनत से घर-संपत्ति बधाई दी।वैसे उनका नाम दीनदयाल था , लेकिन मैं<br />
हमेशा दीनू काका ही बुलाती थी।एक ही बेटा था ,बड़े नाजों से पाला ,हर फरमाइश पूरी की। पढ़ने-लिखने में उसका मन न लगा तो उसका मनपसंद कारोबार जमा दिया।बड़े घर की बेटी बहू बना के लाए, लेकिन अरमानों पर पानी फिर गया ।लड़का पहले ही सेर था और बहू तो सवासेर निकली। सास-ससुर उसे बोझ लगने लगे।बस यहीं दीनू काका गलती कर गए कि समय रहते उन्हें अलग नहीं किया,पुत्र मोह जो था।घर में<br />
बाप और बेटे के बीच ही बंटवारा हो गया।<br />
बेचारे मां-बाप उपेक्षित से पड़े रहते ,दीनू काका जब तक थे ,तब तक स्थिति थोड़ी ठीक सी थी।बाप से संपत्ति जो नाम करानी थी,थोड़ी बहुत बोलचाल भी होती और काम करने नौकर -चाकर भी आते लेकिन एक दिन दीनू काका ऐसे सोए कि फिर न उठे।<br />
अब तो बेटे-बहू को स्वच्छंदता मिल गई थी। संपत्ति जो हाथ आ गई थी।बेचारी जानकी काकी एक तो बुढ़ापे में अकेली रह गई,ऊपर से घर के काम में उन्हें झोंक दिया गया।पूरा दिन काम करती, थोड़ा भी ऊपर -नीचे होता तो कोहराम मच जाता,पहले बहू और फिर बेटा दोनों चिल्लाते।उनकी कर्कश आवाज और वाणी का जहर मेरे घर तक आता।बेचारी काकी सुबक के रह जाती।<br />
काकी को चिकनगुनिया हुआ था , मैं उन्हें देखने चली गई तो बहू ने बुरा सा मुंह बनाकर कहा-सब बहाने हैं जी ,पड़े रहने के। बुढ़ापे में ऐसे पड़े रहेंगी तो हाथ -पैर जाम हो जाएंगे ,पर मजाल है कि किसी की सुन ले,बड़ी जिद्दी है।'मैं क्या कहती , मैं काकी को देखने उनके कमरे में चली गई।एक छोटी सी खाट पे हड्डियों का ढांचा लेटा था,बुखार से मुंह लाल हो रहा था।कमरे में न जाने कबसे झाड़ू नहीं लगी थी।एक कोने में मैले कपड़ों का जमघट लगा था।जमीन पे जूठे बर्तन पड़े थे।दवाई के नाम पर बुखार उतारने की गोली रखी थी।<br />
मैंने हौले से उनके सिर पर हाथ रखा तो उन्होंने आंखें खोली-कैसी हो काकी ! बुखार तो अभी भी है आपको।खाया कुछ सुबह से आपने!<br />
खड़ा ही नहीं हुआ गया, बहुत दर्द है जोड़ों<br />
में।देखूंगी कुछ बचा पड़ा होगा तो .. आंखों से अश्रुधारा बह रही थी। मैं बना दूं कुछ..<br />
अरे नहीं तुम बैठो।<br />
पता नहीं उनकी बहू कान लगाए खड़ी थी क्या,तुरंत कमरे में आई ..हम क्या भूखा मारते हैं तुम्हें जो बाहरवालों को दुखड़ा सुना रही हो, तुम्हारे इन्हीं कर्मो के कारण तुम्हारे पास खड़े होने का मन नहीं करता।यह सुन मैं वहां से चली आई।इस बात को एक हफ्ता<br />
ही हुआ था ,पता चला कि काकी को लकवा मार गया ,उनकी कामवाली बाई सब बताती<br />
थी ।मेरी तो फिर वहां जाने की हिम्मत नही हो रही थी लेकिन फिर भी गई,आखिर बचपन से काकी से लगाव जो था,इस बार तो देखा ही नहीं गया,कमरा बदबू से भरा था। बेहोशी की हालत में पड़ी थी काकी! मैं<br />
यह दृश्य देख न सकी और घर आकर सोचने लगी क्या करूं? अस्पताल में फोन किया और एंबुलेंस बुलाई ,वे लोग आए तो मैं भी बाहर आ गई लेकिन बहूरानी ने कहा दिया कि हमने उन्हें अस्पताल भेज दिया है। एंबुलेंस वापस चली गई।सुबह मैंने बाई से पूछा तो पता चला कि हां शायद भेज दिया मुझे तो नहीं दिखी और फिर दो-तीन दिन बाद ही निधन की खबर आई।तब भी खूब दिखावा किया और आज भी खूब दिखावा कर रहे हैं । मैं मिलकर और हाथ जोड़कर चली आई ।उस भोजन का ग्रास में कैसे ग्रहण कर सकती थी , जिसमें काकी की अथाह वेदना निहित थी।<br />
<br />
अभिलाषा चौहान<br />
<br />
<br />
<br />
<br /></div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-81339905836704545882019-12-13T08:49:00.000+05:302019-12-13T08:49:44.124+05:30बिन फेरे हम तेरे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
रागिनी आज रिटायर हो रही थी ।जीवन के इन साठ दशकों में उसने बहुत -कुछ देखा था। अपने एकाकीपन को दूर करने के लिए<br />
उसने स्वयं को काम में पूरी तरह से डुबो दिया था।सहकर्मियों ने उसे विदाई देने के लिए छोटी सी पार्टी रखी थी।उसकी हम उम्र<br />
नीता उससे पूछ बैठी-अब तेरा समय कैसे कटेगा रागिनी!कैसे रहेगी अकेले तू।<br />
अरे जब अब तक की गुजर गई तो आगे भी गुजर जाएगी , करेंगे कुछ।<br />
तभी चपरासी एक गुलदस्ता और कार्ड लेकर आया और बोला-ये साहब आपसे मिलना चाहते हैं। रागिनी ने गुलदस्ता और कार्ड एक तरफ रख दिया ,नाम भी नहीं देखा।ठीक है<br />
भेज दो।<br />
थोड़ी देर में एक शख्स अंदर आया।जी कहिए क्या काम है।सिर झुकाए रागिनी बोली।<br />
रागिनी!कैसी हो?अब तो सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुकी हो , मैं आज का ही इंतजार<br />
कर रहा था।स्वर सुन चौंक कर खड़ी हो गई<br />
रागिनी... राकेश तुम और यहां!! अचानक कैसे?<br />
सारे प्रश्न अभी ही कर लोगी तो बाद के लिए<br />
भी कुछ छोड़ोगी!चलो बाहर चलते हैं। दोनों<br />
केफेटेरिया में आ गए।<br />
और सुनाओ राकेश इतने बरसों बाद मेरी याद कैसे आ गई?तुम्हारे बच्चे कैसे हैं?<br />
बच्चे वो भी मेरे,कैसी बातें करती हो रागिनी!<br />
मैंने जीवन में सिर्फ तुम्हें प्यार किया था,तुम न मिली तो फिर किसी से मेरी नजरें न मिली<br />
या कहो कि कोई मुझे भाया ही नहीं।<br />
क्या कह रहे हो ? मुझे तो यही पता था कि तुमने शादी कर ली है विदेश में!<br />
नहीं ये जिसने भी तुमसे कहा ग़लत कहा। मैंने तो हमेशा तुम्हें चाहा,भले ही तुम्हारे साथ<br />
मेरे फेरे न हुए फिर मैं तन-मन से तुम्हारा ही रहा।<br />
रागिनी की आंखों से आंसू बहने लगे। मुझे माफ़ कर दो राकेश, माता-पिता के दबाव में<br />
मुझे विवाह के लिए हां करनी पड़ी। लेकिन<br />
मैं मन से उसे कभी अपना पति ने मान सकी,<br />
फिर मेरा तलाक हो गया क्योंकि उसकी गलत आदतें मुझे बर्दाश्त नहीं हुई। लेकिन मैंने हमेशा तुम्हें याद किया।शायद ही ऐसा कोई पल रहा हो जब तुम्हारी कमी न खली<br />
हो।<br />
तो अब क्या सोच रही हो रागिनी,अब भी समय है हम बाकी बची जिंदगी को खुशी-खुशी जिएंगे।<br />
लोग क्या कहेंगे राकेश!अब इस उम्र में विवाह !मजाक बन जाएगा हमारे प्यार का।<br />
विवाह की क्या आवश्यकता है रागिनी,जब हम दोनों ही एक दूसरे के हैं तो समाज को इसका प्रमाण क्या देना। मैं तो इन बातों में विश्वास ही नहीं करता क्योंकि फेरे लेकर भी<br />
लोग एक-दूसरे को नहीं अपना पाते।अपने आपको ही देख लो।<br />
सही कहा राकेश 'बिन फेरे हम तेरे'यही सच है हमारे लिए ,अब हम नई शुरुआत करेंगे।<br />
बिल्कुल, दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।<br />
<br />
अभिलाषा चौहान<br />
स्वरचित मौलिक<br />
<br />
<br />
<br />
<br /></div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-41708249716685688322019-08-01T10:56:00.000+05:302019-08-06T08:03:01.463+05:30गिद्ध<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
गिद्ध ये नाम सुनते ही वह पक्षी स्मरण हो</div>
<div style="text-align: justify;">
आता है,जो मृत प्राणियों को अपना आहार</div>
<div style="text-align: justify;">
बनाता है।पर अब सुना है कि गिद्धों की संख्या कम हो गई है या यूं कहें कि आदमी में</div>
<div style="text-align: justify;">
गिद्ध की प्रवृति ने जन्म ले लिया है,जो जिंदा</div>
<div style="text-align: justify;">
इंसानों को भी अपना शिकार बना लेती है।</div>
<div style="text-align: justify;">
शायद यही कारण है कि गिद्ध अब नहीं दिखते।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
हो सकता है ,आप सहमत न हों कि भई</div>
<div style="text-align: justify;">
ये मैं क्या कह रही हूं....! लेकिन ये सच है,</div>
<div style="text-align: justify;">
आप स्वयं ही निर्णय करिए।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
गांव-कूचों में, गली-मोहल्ले में, शहरों की सड़कों पर आपको ऐसे गिद्ध देखने को मिल<br />
जाएंगे,जो राह चलती लड़कियों-औरतों पर<br />
ऐसे नजर गड़ाते है,जैसे वे उनका शिकार हो,<br />
छोटी बच्चियां इन गिद्धों का पसंदीदा भोजन है,आपकी आंखें जब तक उन्हें देखेगी तब तक वे अपना शिकार कर चुके होते हैं।<br />
<br />
ऐसे ही गिद्ध धन-संपत्ति के लिए अपने माता-पिता ,अपने भाई-बहनों,पत्नी को नोंचते-खसोटते नजर आते हैं।ये गिद्ध हर कहीं हैं..सरकारी दफ्तरों में, अस्पतालों में<br />
राजनीति में कानून के रक्षकों में...ये कब<br />
आप पर झपट्टा मारकर दें....यह आपकी सोच से परे है।<br />
<br />
इनके कारण समाज में अपराधों की दीमक<br />
लग गई है।जिसको रोकने के उपाय नाकाम<br />
हो रहे हैं। गिद्धों की संख्या दिनों-दिन बढ़<br />
रही है... समाचार पत्र और दूरदर्शन पर रोज<br />
इन गिद्धों के चर्चे होते हैं।<br />
<br />
<br />
अभिलाषा चौहान<br />
स्वरचित मौलिक<br />
<br />
<br />
<br />
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-8737381354381007352019-07-14T10:28:00.000+05:302019-07-14T10:28:52.770+05:30वो दिन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
भुलाए से भी न भूलेंगे वो दिन कभी,<br />
साथ हमने बिताए थे जो दिन कभी।<br />
कैसी टूटी थी हम पर विपदा बड़ी,<br />
सामने मौत आकर हुई थी खड़ी।<br />
तुमको देखा हमने तड़पते हुए,<br />
हम खड़े थे हाथ मलते हुए ।<br />
आँखों से लगी आंसुओं की झड़ी,<br />
थी संकट में जीवन की घड़ी ।<br />
सुविधाओं ने हमको धोखा दिया ,<br />
दुआओं ने कुछ असर न किया।<br />
भगवान पत्थर के बन गए,<br />
हम खड़े हाथ मलते रह गए।<br />
भुलाए नहीं जा सकते वो दिन,<br />
याद में बीतता है हर एक दिन।<br />
आँखों में बसे रहते हैं वो दिन,<br />
जीना मुश्किल हो गया तुम बिन।<br />
<br />
अभिलाषा चौहान<br />
स्वरचित<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br /></div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-53338054671201035962019-04-22T11:31:00.000+05:302019-07-09T19:30:57.079+05:30कुछ गीत बनाए हैं मैंने<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कल्पना के पंख लगाकर,<br />
कुछ ख्बाव सजाए मैंने।<br />
अनुभूति को आधार बनाकर,<br />
कुछ गीत बनाए हैं मैंने।<br />
<br />
जीवन के कोरे पन्नों पर,<br />
कुछ भाव उकेरे हैं मैंने।<br />
बुद्धि को कलम बनाकर<br />
कविताएँ रच दी हैं मैंने ।<br />
<br />
भावों के मोती चुन-चुनकर,<br />
दिल को दवात बनाया मैंने।<br />
शब्दों की माला में गूंथकर,<br />
इक संसार सजाया मैंने।<br />
<br />
भाव आत्मा, रस है प्राण,<br />
शब्द शरीर, अर्थ है पहचान।<br />
भावों के अनुपम मोती से,<br />
उत्तम काव्य का हो निर्माण।<br />
अभिलाषा चौहान<br />
स्वरचित<br />
<blockquote class="tr_bq">
<br /></blockquote>
</div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-57258005257426658882019-03-26T23:05:00.000+05:302019-03-26T23:05:31.152+05:30प्रभात बेला<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
प्राची दिशा में छिटकी लालिमा<br />
बिखरने लगा मंगल कुमकुम<br />
हर्षित वसुधा पा सौभाग्य प्रतीक<br />
जाग्रत जीवन हर्षित तन-मन<br />
वृक्ष भी करने लगे हैं नर्तन<br />
पक्षी कलरव गूंज उठा है<br />
जीवन फिर से झूम उठा है<br />
खिलने को कलियाँ उत्सुक<br />
सिंदूरी आभा में जलधि<br />
सुंदरता का करता संवर्धन<br />
सिंदूरी हुआ हिमगिरि<br />
अति अलौकिक दिव्य दर्शन<br />
तन-मन सिंदूरी हुआ हमारा<br />
जब वसुधा पर बिखरा<br />
मंगल कुमकुम सारा<br />
जगजीवन हुआ ऊर्जावान<br />
गऊएं भी छेड़ रही तान<br />
खेतों में लहराती हरियाली<br />
ग्वाले ने बांसुरी निकाली<br />
सुनाई उसने मधुर धुन<br />
भंवरा भी करता गुन-गुन<br />
मंगलमय हुआ सारा जीवन<br />
जब दिनकर का हुआ आगमन। ।<br />
<br />
अभिलाषा चौहान </div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-17121417639036253112019-03-26T23:01:00.000+05:302019-10-17T16:57:51.346+05:30एक दीप ऐसा जलाए<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
दीपावली पर<br />
जलें दीप ऐसे<br />
मिटे तम कलुष<br />
मिटे अज्ञान ऐसे<br />
रवि-किरणें<br />
करें तम का नाश जैसे।<br />
दीप मालाएं<br />
हर ओर जगमगाएं<br />
सबके जीवन में<br />
ऐसे ही खुशियाँ आए<br />
जैसे बगिया में<br />
अनेक पुष्प खिल जाएं।<br />
जीवन में यश सुख<br />
समृद्धि बढ़े ऐसे<br />
कोई पौधा वृक्ष<br />
बनता हो जैसे।<br />
दीप दीवाली के<br />
कर दें हर घर को रोशन<br />
नहीं हो कहीं भी<br />
किसी का अब शोषण।<br />
एक दीप जलाएं<br />
सदा हम ऐसा<br />
हो अंतरतम प्रकाशित<br />
मन से मन का<br />
कराए मिलन हमेशा<br />
अभिलाषा चौहान<br />
स्वरचित<br />
<br />
<br />
<br /></div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-7859443371645353602019-03-26T23:00:00.001+05:302019-03-26T23:00:26.626+05:30दीवाली<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आया दीवाली का पावन त्योहार,<br />
संग लाया अपने खुशियाँ अपार।<br />
द्वार - द्वार सजने लगे तोरण,<br />
जगमग दीपों से हर घर रोशन।<br />
इतने दीप जले धरती पर ,<br />
कालिमा अमा की लेते हैं हर।<br />
पाँच दिनों का ये पर्व मनोहर,<br />
बड़े उल्लास से मनता घर-घर।<br />
मन से मन फिर मिलने लगे हैं ,<br />
प्रेम-पुष्प फिर खिलने लगे हैं।<br />
आओ मिलकर त्योहार मनाएं,<br />
दीप-दान कर अंधकार मिटाए।<br />
बस इतनी सी इच्छा है मन में,<br />
अंधकार न रहे किसी के जीवन में ।<br />
<br />
अभिलाषा चौहान<br />
स्वरचित<br />
<br /></div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-41681794962638707172019-03-26T22:59:00.000+05:302019-03-26T22:59:23.931+05:30गोवर्धन पूजा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
करिए नित गोधन की पूजा,<br />
उस सम कोई और न दूजा।<br />
गो साक्षात लक्ष्मी स्वरूपा,<br />
गो संवर्धन संस्कृति अनुरूपा।<br />
पंचगव्य अति पावन अमृत,<br />
गोबर, मूत्र, दूध, दही और घृत।<br />
कान्हा को गऊएं अति प्यारी,<br />
गो रक्षण करें गो हितकारी।<br />
गोवर्धन का अर्थ यह दूजा,<br />
गोमाता की करिए सदा पूजा।<br />
गोमाता सहें कष्ट अपारा,<br />
गोरक्षण हो संकल्प हमारा।<br />
गोसंवर्धन करो जीवन के हेतु,<br />
कान्हा भक्ति में है गोमाता सेतु।<br />
गोवर्धन भी गोबर से ही बनते,<br />
नवान्नों के फिर भोग हैं लगते।<br />
बिन गो के गोवर्धन न होंगे,<br />
बिन गो सेवा कान्हा प्रसन्न न होंगे।<br />
<br />
अभिलाषा चौहान<br />
स्वरचित </div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-75697338516056411972019-01-28T06:58:00.000+05:302019-03-26T22:55:26.878+05:30मानव के संस्कार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पर सेवा परोपकार,<br />
मानव के हैं संस्कार।<br />
कर मानवधर्म अंगीकार,<br />
करते सदा जगत-उपकार।<br />
निस्वार्थ भाव से होते पूर्ण,<br />
संस्कार होते संपूर्ण।<br />
दीन-हीन दुखियों के उद्धारक,<br />
अत्याचार के होते संहारक।<br />
आबाल-वृद्ध की करते सेवा,<br />
कभी नहीं थकते है देखा।<br />
सेवा ही जीवन का लक्ष्य,<br />
कर्म से सदा होती प्रत्यक्ष।<br />
एक उदाहरण ऐसा जग में,<br />
चांद सा चमके इस नभ में।<br />
मदर टेरेसा नाम है उनका,<br />
सेवा ही था धर्म जिनका।<br />
कितनों का जीवन संवारा,<br />
कितनों को दिया सहारा।<br />
दीन-हीन की थी वे आशा,<br />
देख उन्हें मिटती थी हताशा।<br />
नाम अमर उनका है जग में,<br />
चमकी बनके तारा नभ में।<br />
<br />
अभिलाषा चौहान<br />
स्वरचित<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br /></div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-56625150664208676442018-12-02T11:29:00.000+05:302019-03-26T22:55:59.985+05:30प्यार एक खूबसूरत एहसास<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
प्यार एक खुबसूरत एहसास,<br />
<div>
प्यार जीवन की आस और विश्वास !!</div>
<div>
प्यार प्रभु की अनमोल नियामत,</div>
<div>
प्यार शीतल हवा का झौंका,</div>
<div>
पुष्पों की भीनी-भीनी सुगंध है।।</div>
<div>
प्यार दीपक की लौ, मंदिर की घंटी,</div>
<div>
पायल की खनक,नुपुरों की झनकार है!!</div>
<div>
प्यार में बसे सतरंगी सपने,</div>
<div>
कुछ मेरे कुछ तेरे सबके अपने।</div>
<div>
प्यार में रचा-बसा सारा संसार,</div>
<div>
प्यार जीवन में भावों का हार।</div>
<div>
प्यार में समर्पण,त्याग,दीवानापन,</div>
<div>
आनंद,मधुरता,सहज अपनापन।।</div>
<div>
क्रोध ,राग,द्वेष ,ईर्ष्या से परे,</div>
<div>
सुन्दर,सरल,सहज जीवन।।</div>
<div>
प्यार दिलों को जोड़ता है,</div>
<div>
परमार जीना सिखाता है।।</div>
<div>
प्यार राह दिखाता है,</div>
<div>
इसमें समाहित हो जाते </div>
<div>
'मैं 'और 'तुम'रह जाता 'हम'</div>
<div>
यही वसुधैव कुटुंबकम् का आधार है।।</div>
<div>
<br /></div>
<div>
अभिलाषा चौहान</div>
<div>
स्वरचित</div>
</div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-7626161183919470522018-11-26T20:20:00.000+05:302018-11-26T20:20:55.465+05:30ग्रंथ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
महान ग्रंथों से समृद्ध,<br />
हमारी साहित्य परंपरा।<br />
अनुपम ज्ञान-विज्ञान,<br />
इन महान ग्रंथों में भरा।<br />
वेद,पुराण, उपनिषद,श्रुति,<br />
श्री मद्भागवत गीता,मनु स्मृति।<br />
रामायण और महाभारत,<br />
महान मनीषियों की महान कृति।<br />
सांख्य,योग,न्याय,मीमांसा,<br />
अनुपम दर्शन ग्रंथ प्रकाशा।<br />
रघुवंश, मेघदूत,ऋतु संहार,<br />
कालिदास की श्रेष्ठता का प्रसार।<br />
रामचरितमानस अनुपम ग्रंथ,<br />
रामभक्ति का प्रशस्त करें पंथ।<br />
कृष्ण लीला का अनुपम चित्रण,<br />
सूरसागर ग्रंथ में है इसका वर्णन।<br />
शैव-दर्शन का करती बखान,<br />
प्रसाद की कामायनी है महान।<br />
उत्तम चरित्र,उत्तम मूल्य विभूषित,<br />
धर्म-पथ,सत्कर्म सुशोभित,<br />
व्याकरण,गणित, चिकित्सा।<br />
अन्यान्य ज्ञान ग्रंथों में शोभित।<br />
उत्कृष्ट ज्ञान के ग्रंथ महान,<br />
करते हैं परंपरा का बखान।<br />
संस्कृति की पहचान ये ग्रंथ,<br />
दर्शन,ज्ञान-विज्ञान के पंथ।<br />
<br />
अभिलाषा चौहान<br />
स्वरचित<br />
<br />
<br /></div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-15052750595076327022018-11-03T13:05:00.001+05:302018-11-03T13:07:39.724+05:30ममता <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ममता का संसार है व्यापक,<br />
ममता का नहीं कोई मापक।<br />
ममता की प्रतिमूर्ति है माँ,<br />
मानव या किसी जीव की माँ।<br />
<br />
ममता न देखे गोरा-काला,<br />
ममता ने सृजन भार संभाला।<br />
ममता जीव का पोषण करती,<br />
ममता ही संस्कार है देती।<br />
<br />
ममता न देखे अपना-पराया ,<br />
ममता में संसार समाया।<br />
ममता हृदय का सुंदर भाव,<br />
ममता भर देती है घाव।<br />
<br />
माँ ईश्वर की अनुपम रचना,<br />
ममता उसका होता गहना।<br />
ममता जीवन की अनुपम विभूति,<br />
महिमा वर्णन वेद पुराण श्रुति।<br />
<br />
ममता माँ की अद्भुत प्यारी,<br />
देवता भी हैं इसके पुजारी।<br />
ऐसा निर्मल भाव है मन का<br />
शब्दों में महिमा न जाए उतारी।<br />
<br />
अभिलाषा चौहान<br />
स्वरचित </div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-61049105339044980582018-10-11T10:45:00.001+05:302022-12-07T10:58:58.340+05:30मैं नारी हूँ मैं शक्ति हूँ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मैं सबला हूं पर अबला नहीं ,<br />
<div>
मेरी शक्ति का तुम्हें भान नहीं। </div>
<div>
<br /></div>
<div>
तुम जीत नहीं सकते मुझको, </div>
<div>
तुम हरा नहीं सकते मुझको। </div>
<div>
<br /></div>
<div>
मैं सहती हूं पर कमजोर नहीं, </div>
<div>
मैं सुनती पर मजबूर नहीं । </div>
<div>
<br /></div>
<div>
तुम भ्रम में जीवन जीते हो, </div>
<div>
मन ही मन खुश होते हो </div>
<div>
<br /></div>
<div>
मेरे सब्र का प्याला छलकेगा, </div>
<div>
मेरा रौद्र रुप तब झलकेगा। </div>
<div>
<br /></div>
<div>
तब मैं दुर्गा बन जाऊंगी, </div>
<div>
या फिर काली कहलाऊंगी। </div>
<div>
<br /></div>
<div>
मैं स्वाभिमान की छाया हूं , </div>
<div>
रखती अपनी मर्यादा हूं। </div>
<div>
<br /></div>
<div>
मेरी ममता मेरी शक्ति है, </div>
<div>
सतीत्व मेरा मेरी भक्ति है। </div>
<div>
<br /></div>
<div>
मैं मां शक्ति का अंश बनूं, </div>
<div>
मैं उसके बताए पथ पर चलूं। </div>
<div>
<br /></div>
<div>
अभिलाषा चौहान </div>
<div>
स्वरचित </div>
<div>
<br /></div>
<div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYO4P_HOHF9roukfvB2-mO4H9Qb8ReUUKij_U4uOEsoEvROYB8GTCeSKcT1rTUsx4FJYPlGcU9ywXWh6qyKiZ04hfhcVq4STaRCs88VTW1qXtu2XbghxCW8tBIwxCzn7ZOFFNEvZSAYPQ/s1600/IMG_20181011_104242.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1260" data-original-width="1080" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYO4P_HOHF9roukfvB2-mO4H9Qb8ReUUKij_U4uOEsoEvROYB8GTCeSKcT1rTUsx4FJYPlGcU9ywXWh6qyKiZ04hfhcVq4STaRCs88VTW1qXtu2XbghxCW8tBIwxCzn7ZOFFNEvZSAYPQ/s320/IMG_20181011_104242.jpg" width="274" /></a></div>
<br /></div>
<div>
<br /></div>
<div>
<br /></div>
<div>
<br /></div>
<div>
<br /></div>
</div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-58619203322180001982018-10-06T09:53:00.001+05:302020-08-06T23:05:54.842+05:30इंतजार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
प्रिय का करती इंतजार<br />
हृदय हो रहा बेकरार<br />
इक पल को नहीं करार<br />
कब पूरा होगा इंतजार।<br />
<br />
धीरे-धीरे गई रात गुजर<br />
दिन के बीत रहे प्रहर<br />
प्रियतम की नहीं कोई खबर<br />
कैसे करूं उनका इंतजार !<br />
<br />
घर-बाहर कहीं चैन न आवे<br />
राह तकूं मेरा जी घबरावे<br />
अब तो आओ प्रियतम प्यारे<br />
अब और न होगा इंतजार।<br />
<br />
तभी ईश्वर ने सुनी पुकार<br />
प्रियतम छवि प्रत्यक्ष साकार<br />
प्रेम मिलन ने लिया आकार<br />
अब खत्म हुआ था इंतजार।<br />
<br />
अभिलाषा चौहान<br />
स्वरचित<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7x7_Tx3fCIRz0PxaSqZTgt1UMwaYYGfVJFj8Egt5Ax1-qS-0W2XBDgmQfIcP6s_2RPfPwzG8GsmE4UudDN54MFhLuPoYHCllRsISkSvg0ezI_Yg8eWPPAOTVywwKl60I33BN4X8IJiCI/s1600/IMG_20181006_095207.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="774" data-original-width="1080" height="229" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7x7_Tx3fCIRz0PxaSqZTgt1UMwaYYGfVJFj8Egt5Ax1-qS-0W2XBDgmQfIcP6s_2RPfPwzG8GsmE4UudDN54MFhLuPoYHCllRsISkSvg0ezI_Yg8eWPPAOTVywwKl60I33BN4X8IJiCI/s320/IMG_20181006_095207.jpg" width="320" /></a></div>
<br /></div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-80761583286889557092018-10-03T10:47:00.000+05:302018-10-03T10:53:43.666+05:30राधा कृष्ण प्रेम रसधार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज कृष्ण साथ मिला,<br />
हाथों में उनका हाथ मिला।<br />
तन मन में प्रेम तरंग उठी,<br />
सृष्टि भी जैसे झूम उठी।<br />
वन-उपवन भी हो गए पुष्पित,<br />
बहने लगी मलय भी सुरभित।<br />
चहक उठे तब पक्षी सारे ,<br />
जब प्रियतम ने हाथ गहा रे।<br />
प्रीत का रंग चहुंओर है छाया,<br />
मिलन उसी से जो मनभाया।<br />
झूम उठे धरती-गगन भी,<br />
लौट आया देखो वसंत भी।<br />
गुन-गुन करते भंवरे ऐसे,<br />
सुर संगीत छिडें हो जैसे।<br />
उड़ती तितलियां प्यारी- प्यारी,<br />
महकने लगी प्रेम की फुलवारी।<br />
बहने लगी है रस की धारा,<br />
आनंदित संसार है सारा ।<br />
<br />
अभिलाषा चौहान<br />
(स्वरचित )<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhHnWojG3dLrj0aHrg8NBC3duc7o6EHBJHcMn29MJ4JEzekYsLATSdCfLbRA0RLreEH5gYXFIjuO92G7Sw6LaQ6s5Fs5aRibe3eNDNQiSZhupUOQzdI8SVw7vmSXHB33qAFh9f8bW8ELdI/s1600/FB_IMG_1538325195148.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="715" data-original-width="720" height="317" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhHnWojG3dLrj0aHrg8NBC3duc7o6EHBJHcMn29MJ4JEzekYsLATSdCfLbRA0RLreEH5gYXFIjuO92G7Sw6LaQ6s5Fs5aRibe3eNDNQiSZhupUOQzdI8SVw7vmSXHB33qAFh9f8bW8ELdI/s320/FB_IMG_1538325195148.jpg" width="320" /></a></div>
<br /></div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-68179334542474289162018-10-02T11:26:00.001+05:302018-10-02T11:27:30.794+05:30आदर्श कहां अब दिखते हैं?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
प्रस्तुत रचना मेरे मन के भावों को अभिव्यक्त करती है। इसे अन्यथा न लेवें।<br />
<br />
दादी नानी दूर हुई<br />
बच्चों से कहानी दूर हुई<br />
न होती आदर्शों की बातें<br />
न सुनते अब अच्छी बातें<br />
नेता अभिनेता दो चेहरे<br />
अब बच्चों को दिखते हैं<br />
किन आदर्शों की बात करें<br />
जो कहीं नहीं अब दिखते हैं<br />
जो घटता सबके समक्ष<br />
अनुसरण उसी का होता है<br />
बदल गई है सोच सभी की<br />
बदल रहे संस्कार तभी<br />
आदर्शों की बातें करना<br />
बीते कल की बात हुई<br />
भरा हुआ इतिहास हमारा<br />
कितने अनुपम आदर्शों से<br />
वर्तमान में कौन प्रभावित<br />
होता है इन आदर्शों से<br />
बातें करते सब बडी़ बड़ी<br />
सबको अपने सुख की पडी<br />
अब कोई कहां उन आदर्शों पर<br />
कभी खरा उतरता है ?<br />
<br />
<br />
अभिलाषा चौहान<br />
स्वरचित<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhN1B4X_YzTJ6_g6P1VFFq6gLd-wFuk-0nzCdLnkhgCfARZM8IvKO9mjNHkhzUJLwZ3FGIFZSr9YlVgOnNKWdP-67krsU9mjrV1i5ut7xqCv2mAV1owR6TOcybg_WBcLnpzCqZyPXB9OcE/s1600/IMG_20181002_112436.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="774" data-original-width="1080" height="229" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhN1B4X_YzTJ6_g6P1VFFq6gLd-wFuk-0nzCdLnkhgCfARZM8IvKO9mjNHkhzUJLwZ3FGIFZSr9YlVgOnNKWdP-67krsU9mjrV1i5ut7xqCv2mAV1owR6TOcybg_WBcLnpzCqZyPXB9OcE/s320/IMG_20181002_112436.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<br />
<br /></div>
Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4323008449010144860.post-72094266292004095542018-09-28T07:35:00.001+05:302018-09-28T07:35:49.265+05:30दिल तो बच्चा है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
दिल तो सच्चा है<br />
इसे सच्चा ही रहने दो<br />
दिल तो बच्चा है<br />
इसे बच्चा ही रहने दो<br />
खिलखिलाने दो मुस्कराने दो<br />
उठाने दो जिंदगी का आनंद<br />
मिली हैं सांसे हमको चंद<br />
न करो पिंजरे में इसे बंद<br />
पक्षियों की तरह उड़ने दो<br />
चहकने दो चहचहाने दो<br />
जीवन का आनंद उठाने दो<br />
रहने दो इसे निर्विकार<br />
बहने दो इसमें रसधार<br />
रहे सबके लिए इसमें प्यार<br />
करे सबका ये उपकार<br />
बने सच्चा वो इंसान<br />
जिसमें बचपन है विद्यमान<br />
न करे खुद पर वो अभिमान<br />
करे मानवता का कल्याण<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
देकर दूसरों को आनंद<br />
वो खुद पाएगा परमानंद<br />
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अभिलाषा चौहान<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgncPyIr9VOcQ7XjwFQVigh1-mTM7Qy7pgFUySjjXCBCG8EG3lALCAx1fM3Vef3f2jTFgWN3x6HjuUuPgIjuZQA4ovEOJEG0_yIVeyb-Qpf8RQdBtM09wyMT8KmUiahC5KjSt7LUkhon_Y/s1600/IMG_20180928_073404.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="551" data-original-width="456" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgncPyIr9VOcQ7XjwFQVigh1-mTM7Qy7pgFUySjjXCBCG8EG3lALCAx1fM3Vef3f2jTFgWN3x6HjuUuPgIjuZQA4ovEOJEG0_yIVeyb-Qpf8RQdBtM09wyMT8KmUiahC5KjSt7LUkhon_Y/s320/IMG_20180928_073404.jpg" width="264" /></a></div>
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Abhilashahttp://www.blogger.com/profile/06192407072045235698noreply@blogger.com0