कल्पना के पंख लगाकर,
कुछ ख्बाव सजाए मैंने।
अनुभूति को आधार बनाकर,
कुछ गीत बनाए हैं मैंने।
जीवन के कोरे पन्नों पर,
कुछ भाव उकेरे हैं मैंने।
बुद्धि को कलम बनाकर
कविताएँ रच दी हैं मैंने ।
भावों के मोती चुन-चुनकर,
दिल को दवात बनाया मैंने।
शब्दों की माला में गूंथकर,
इक संसार सजाया मैंने।
भाव आत्मा, रस है प्राण,
शब्द शरीर, अर्थ है पहचान।
भावों के अनुपम मोती से,
उत्तम काव्य का हो निर्माण।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
कुछ ख्बाव सजाए मैंने।
अनुभूति को आधार बनाकर,
कुछ गीत बनाए हैं मैंने।
जीवन के कोरे पन्नों पर,
कुछ भाव उकेरे हैं मैंने।
बुद्धि को कलम बनाकर
कविताएँ रच दी हैं मैंने ।
भावों के मोती चुन-चुनकर,
दिल को दवात बनाया मैंने।
शब्दों की माला में गूंथकर,
इक संसार सजाया मैंने।
भाव आत्मा, रस है प्राण,
शब्द शरीर, अर्थ है पहचान।
भावों के अनुपम मोती से,
उत्तम काव्य का हो निर्माण।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
भाव आत्मा, रस है प्राण,
ReplyDeleteशब्द शरीर, अर्थ है पहचान।
भावों के अनुपम मोती से,
उत्तम काव्य का हो निर्माण।
सुन्दर रचना।
सहृदय आभार
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर शब्दों और भावों से सजी रच्ना है अभिलाषा जी!
ReplyDeleteसहृदय आभार
Deleteउत्तम काव्य का निर्माण तो सहज ही हो गया है ...
ReplyDeleteशब्दों को सुन्दरता से गूंथा है ...
सहृदय आभार आदरणीय
Deleteसादर आभार आपका आदरणीय शिवम जी
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